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गुलाल [ कवीता ]

anukruti
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श्याम लाल – लाल है  , कृष्ण भी तो है वो लाल ,
मैं भी उसका लाल हूँ , तू भी जिसका लाल है,
ललाट लाल – लाल है ,और चूनर भी तो है वो लाल ,
आज तेरे लाल ने , मुझे लाल – लाल कर दिया ।

क्यों आज इस हलक में , इतना गरल है भरा ,
क्यों तुम्हारा मुख आज , लाल – पीला हो गया,
क्यों आज , इस लाल को , इतना गुरूर हो गया,
क्या तुम्हें , इस लाल पे , जरा भी मलाल है ।

रक्त का है वर्ण लाल ,रज को लाल कर दिया ,
आज हर कण को तूने , लाल – लाल कर दिया ,
क्यों ऐसे लाल को मैंने , कोख में अपने जन्म दिया,
आज उस अश्रु की , हर बूँद ही तो लाल है ।

श्याम ही तो तम भी है, पर ज्योत ही तो लाल है,
लाल ही तो सूर्य है, और किरणें लाल – लाल हैं,
लाल माटी में  सना , वो माटी भी तो लाल है ,
इस लाल के बिना , तो जीवन ही दुश्वार है ।

मरा – मरा के भेद को , वो जान ही नहीं सका ,
पर रण में तो वह स्वयं को , राम – राम कह गया ,
है गुरूर आज ये  कि , सूरज वो मेरा लाल था ,
इस राम नाम में , आज मैं गुलाल हो गया ।

समीक्षा तैलंग

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